समय और कवि / निमेष निखिल
लिख लिख कर मन का रोने से निकले हुए पंक्तियों को अव्यवस्थाओँ के प्रसंग और प्रतिकूलताभरी लम्हों को भयभीत है कवि कहीँ भाग न जाए पीडाओँ के...
लालसा / हरिभक्त कटुवाल
पिताजी, मैं स्कूल नहीं जाउँगा इतिहास पढाते हैँ वहाँ, जंग लगे मेसिनो के पूर्जे जैसे मरे हुए दिनों का, और अब तो गणित के सुत्र भी बहुत ही...
राही / महाकवि लक्ष्मीप्रसाद देवकोटा
किस मंदिर को जाओगे राही, किस मंदिर पे जाना है ? किस सामान से पूजा करना, साथ कैसे ले जाना है ? मानवों के कंधे चढकर, किस स्वर्ग को पाना है...
सुखी जीवन / नाजी करिम
बतासलाई समर्पण गरौँ आफ्ना निःश्वास उज्यालालाई दिऔँ हाम्रा हृदय र हिँडौँ निडरताका साथ निस्फिक्री चेतनाले मातिएर । यसबाहेक अर्को कुनै संसार...
चाहती हूँ एक स्वतन्त्र जिन्दगी / सबिता गौतम दाहाल
जिन्दगी से लिपटकर जिन्दगी एक उम्रदराज पेड सी हो गयी है मैं इन लताओँ को ना तो काट कर फेँक सकती हूँ, न उखेडकर । क्या करूँ तन्हा पीपल न हो...
धूवेँ का जंगल \ ईश्वरबल्लभ
उपर आसमान को देखना है क्षितिज को छुना है किसी को एक फूल देना है आसपास कोई है कि नही ! कोई है तो उसे बुलाना है । फिर कोई लहर व लस्कर बनाके...
कुरूप कविता \ भुपिन व्याकुल
अकेली ही कब तक सुन्दर हो के रहे कविता? अकेली ही कब तक सौन्दर्य का अविश्रान्त प्रेमी बनती रहे कविता? जी कर रहा है आज उसे कुरूप बना डालें|...
खिड़की \ मुकुल दाहाल
लाख कोशिश करने पे भी मेरे कमरे की खिड्की बंध नहीं होती लगता है कभी कभी तो बंध भी हो जाए ये खिड्की मगर खुला रहने पे भी दिल पे कुछ सुकुन-सा...