आजकल मुझे \ अभि सुवेदी
लगता है, आजकल मैं अक्सर एक साया ढोकर चलता हूँ। जिस तरह पहाडियोँ के अन्तर्तरङ्ग समझने को धिरे धिरे चारों ओर चक्कर लगाते हैं काली घटाएँ,...
माँ का ख्वाब \ गोपालप्रसाद रिमाल
माँ, वह आएगा भी ? "हाँ, बेटा, वह आएगा । वह सुबह का सूरज की तरह रोशनी बिखेरते हुए आएगा । उसकी कमर पे शबनम-सा जगमगाता हुआ तुम एक हथियार...