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बच्चे / सुमन पोखरेल


तोडना चाहने मात्र से भी

उनके कोमल हाथों पे खुद ही आ जाते हैँ फूल

डाली से,

उनके नन्हे पाँव से कुचल जाने पे

आजीवन खुद को धिक्कारते हैँ काँटे ।

सोच समझकर

सुकोमल, हल्के हो के बारिकी से बसते हैँ

सपने भी उनके आँखों में ।

उन के होठों पे रहने से

उच्चारण करते ही खौफ जगानेवाले शब्द भी

तोतले हो के निकलते हैँ ।

चिडियों को ताने मारती हुई खिलखिला रही पहाडी नदी

उन की हंसी सुनने के बाद

अपने घमन्ड पे खेद करती हुई

चुपचाप तराई की तरफ भाग निकलती है।

खेलते खेलते कभी वे गिर पडे तो

उनकी शरारत के सृजनशीलता पे खोयी हुई प्रकृती को पता ही नहीं चलता

कि, फिर कब उठ के दुसरा कोतुहल खेलने लगे वे।

अनजाने में गिरे जानकार

ज्यादतर तो चोट भी नहीं लगाती जमिन ।

उनकी मुस्कान की निश्छलता

युगों के अभ्यास से भी अनुकरण कर नहीं सके कोई फूल।

विश्वभर के अनेकों दिग्गज संगीतकारों का शदीयों की संगत से भी

कोई वाद्ययन्त्र सिख न सके उनकी बोली की मधुरता।

उनके तोडने पे टुटते हुए भी खिलखिलाता है गमला,

उनके निष्कपट हाथों से गिर पाने पे

हर्ष से उछलते हुए बिखरजाते हैं जो कुछ भी,

उन से खेलने की आनन्द में

खुद को बेरंग होने की हकिकत भी भूल जाता है पानी

खुसी से ।

सोचता हूँ

कहीं सृष्टी ने कुछ ज्यादा ही अन्याय तो नहीं किया ?

बिना युद्ध सबको पराजीत कर पाने का सामर्थ्य के साथ

जीवन का सर्वाधिक सुन्दर जिस क्षण को खेलाते हुए

निमग्न हैं बच्चे,

उस स्वर्णिम आनन्द का बोध होने तक

भाग चुका होता है वो उनके साथ से

फिर कभी न लौटने के लिए ।

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कवि द्वारा मूल नेपाली से अनूदित

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यस कविताको मूल नेपाली पढ्न यहाँ जानुहोस् .......................................................................................................................................

Read translations of this poem by clicking the desired language below

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