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चाहती हूँ एक स्वतन्त्र जिन्दगी / सबिता गौतम दाहाल


Sabita Gautam Dahal

जिन्दगी से लिपटकर जिन्दगी

एक उम्रदराज पेड सी हो गयी है

मैं इन लताओँ को

ना तो काट कर फेँक सकती हूँ, न उखेडकर ।

क्या करूँ

तन्हा पीपल न हो सकी

तन्हा बरगद न हो सकी

तपस्या या समाधी में खो न सकी

जंगल का पेड सी हो गयी है जिन्दगी ।

जिन्दगी से लिपटकर जिन्दगी

एक पुरानी घर सी हो गयी है

इस घर को तोड सकती हूँ न बगल में से कुछ हटाना ।

क्या करूँ

खिडकी से नजर आने वाला देवदार का पेड

या गौरैया का सफर

या हरी खेत नजर आनेवाली

लम्हा भर का मुस्कुराहट ला न सकी होठोँ पे

पुराना शहर की पुरानी घर सी हो गयी है जिन्दगी ।

जड गडे हुए पेड

पुराने किस्म के घरोँ के नमूने

व्यस्त हैँ अपनेअपने स्वार्थी तारिफ गाने में ।

क्या करूँ

मैं न उम्रदराज पेड चाहती हूँ, न पुरानी घर

सिर्फ चाहती हूँ एक स्वतन्त्र जिन्दगी ।

………………………………………………

नेपाली से सुमन पोखरेल द्वारा अनूदित

………………………………………………………………………

Sabita Gautam Dahal translated into Hindi by Suman Pokhrel


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