शोकगीत का पोस्टमार्टम / निमेष निखिल
भगाना है किरनोँ से मार-मार कर कमरे में बचे हुवा अँधियारे को । भूख झाँक रही है बेशर्म नरदौआ में से रोग रो रहा है आँखोँ के सामने खदेडना है...
समय और कवि / निमेष निखिल
लिख लिख कर मन का रोने से निकले हुए पंक्तियों को अव्यवस्थाओँ के प्रसंग और प्रतिकूलताभरी लम्हों को भयभीत है कवि कहीँ भाग न जाए पीडाओँ के...