काठमान्डू की धूप / अभि सुवेदी
काठमान्डू अपने अनेक धूप और अनेक मूहँ से बोलता है। पथ्थर के वाणी पे तरासा हुवा मन से काठमान्डू अपना प्राचीन मूहँ खोल सैलानियोँ से बोलता है । लेकिन हम लोगोँ से यह यन्त्र के मूहँ से बात करता है। मटमैली धूप लेकर हम धूवोँ के धुन्ध के निचे लङ्गुर सा चलते रहते हैँ । कचरोँ के ढेर में से लुढक कर घायल बनी हुई धूप शहर के अन्दर बचे हुए कुछेक जगहोँ पे बेमन से चलती है । बच्चे हात पकड कर इस को ढलोँ मे से बाहर निकालते हैँ । प्राचीन इमारतोँ पे औरतेँ इस की थकित पीठ और नितम्बोँ पे मालिस कर देती हैँ । सर-ओ-पा तेल से लथपथ धूप पवित्र बागमती की ओर दौडती है, और सहसा छलाङ लगाती है । और भिगा हुवा बदन ले कल हम सभी से बोले जानेवाली भाषा की खोज मेँ घबराते हुए भीड में ढुक कर कहीँ खो जाता है ।
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नेपाली से सुमन पोखरेलद्वारा अनूदित
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Abhi Subedi translated into Hindi by Suman Pokhrel
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