शायर न बनाया होता / सुमन पोखरेल
हमारी इश्क को दिल्लगी का घर न बनाया होता
ए संगदिल तुम ने मुहब्बत को जहर न बनाया होता
खंजर-ए-शब-ए-स्याह जाने किस किस को मार लेता
आशुँओ से धो धो के अगर हम ने सहर न बनाया होता
इस आवारगी मे कहाँ जा के भटकते हम ए दोस्त!
गर लोगो ने इस गाँव को शहर न बनाया होता
या खुदा हमे शिशे का ही दिल देना था तो फिर तुम ने उन्हे पथ्थर न बनाया होता
एक काम तो तुमने भी अच्छा किया है 'सुमन' !
पागल कहलाता अगर खुदको शायर न बनाया होता
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