वही हाल दुबारा होता / सुमन पोखरेल
बज्म-ए-जीस्त का कोई और ही नजारा होता
मिल गया दिल को अगर तेरा सहारा होता
समझते तुम भी जजवात को मेरी तरह तो
कहते हो जिसे अपना, दिल वो हमारा होता
जि लेते ताउम्र गम-ओ-नस्तर-ए- आलम मे भी
तेरे मुहब्बत ने जिते जि गर न मारा होता
सोचते हैं पहुँच के मौजे दागे दिल में अब
इस जख्म का काश ! कोई किनारा होता
चाँद ने भी मेरी तरह खाया है फरेव जरुर
वर्ना टुट क्यों जाता बारहा, वो भी सितारा होता
अक्लमन्दी कि है यूँ मर के तुम ने ‘सुमन’ !
क्या भरोसा दिल का वही हाल दुबारा होता
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