top of page

वही हाल दुबारा होता / सुमन पोखरेल


बज्म-ए-जीस्त का कोई और ही नजारा होता

मिल गया दिल को अगर तेरा सहारा होता

समझते तुम भी जजवात को मेरी तरह तो

कहते हो जिसे अपना, दिल वो हमारा होता

जि लेते ताउम्र गम-ओ-नस्तर-ए- आलम मे भी

तेरे मुहब्बत ने जिते जि गर न मारा होता

सोचते हैं पहुँच के मौजे दागे दिल में अब

इस जख्म का काश ! कोई किनारा होता

चाँद ने भी मेरी तरह खाया है फरेव जरुर

वर्ना टुट क्यों जाता बारहा, वो भी सितारा होता

अक्लमन्दी कि है यूँ मर के तुम ने ‘सुमन’ !

क्या भरोसा दिल का वही हाल दुबारा होता

....................................................................

Read this Ghazal in Nastaliq script here

....................................................................

Related Posts

See All

वा र अथवा या कविता / सुमन पोखरेल

मैले लेख्न शुरू गरेको, र तपाईँले पढ्न थाल्नुभएको अक्षरहरूको यो थुप्रो एउटा कविता हो । मैले भोलि अभिव्यक्त गर्ने, र तपाईँले मन लगाएर वा...

Featured Posts
  • Suman Pokhrel
  • Suman Pokhrel
  • Suman Pokhrel
  • allpoetry
  • goodreads
  • LinkedIn Social Icon
  • Suman Pokhrel
  • Suman Pokhrel
  • SoundCloud Social Icon
  • kavitakosh

Join our mailing list

Never miss an update

bottom of page