माथे का पसिना होगा / सुमन पोखरेल
प्याला-ए-लब-ए-यार मानिन्द गम को भी पिना होगा गुजरे चाहे जिस तरह से जिस्त है तो जिना होगा उन को खुस देख के एहसास हुवा है हम को के यकिनन यह बहारों का महिना होगा खुन हर रोज सरेआम बहा करता है फिर भि मजबुर है हम, होठोंको सिना होगा झाड व फानुस जो महलों मे सजे है तेरे उस में मजदुर के माथे का पसिना होगा खुब बैठे हैं बन के, देखनेवाला कौन होगा वह होगें और सामने आईना होगा
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