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नादाँ मैं ये कैसा हूँ ? / सुमन पोखरेल


भीड में हूँ और तन्हा हूँ मै भी मेहर जैसा हूँ

इतनी बढी दुनियाँ में मैं तो बस एक पैसा हूँ

क्या देखोगे सुरत पे, गम से रेजा रेजा है

देख लो गजलें मेरी मै भी बिलकुल वैसा हूँ

सुनते नहीं किसीको, लोग अपने में मसगुल हैं

अपना फसाना सुनाता हूँ नादाँ मैं ये कैसा हूँ

सो गये दुनियाँवाले ओढकर चादर-ए-शब-ए-साद

रात भर जागता रहता हूँ क्या मैं ही पागल ऐसा हूँ ?

दुनियाँ बदल चुकी दुनियावाले बदल चुके

अब भी गजल करता हूँ, मैं जैसा का तैसा हूँ

अन्दर से गम निकला नहीं, और खुशीयाँ बाहर रही

वारिस में भीगता रहता हूँ पर सालों से मैं प्यासा हूँ

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