एक ही मुलाकात ने / सुमन पोखरेल
इल्म नही कब कब उठार्इ कलम किस किस की बात में
अब कौन बताएगा यह हम ने लिखे या लिखा हालात ने
छोड के दामन जिन्दगी की चले जाते दूर कही
गर ना पकडा होता किसी की इख्तिलात ने
सुनी सुनी थी जिन्दगी बेसाज हम्हात थे
हर कदम पे गुँजायी तरलुम आपकी इल्तिफात ने
इल्म न था दुनियाँ का, समझे नही थे प्यार को हम
वाकिफ बना दिया हमे, आप से रहे तल्लुकात ने
कहकशों को नजर अन्दाज किया नजरों से बचते रहे
गिरफ्त किया प्यार में एक ही मुलाकात ने
शिने में वही दिल है, वही आँखे है अपनी 'सुमन'
बदल दिया सपनों को किस तरह जजवात ने
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