मुस्कुराना आप का / सुमन पोखरेल
मुझे सामने देख यकायक वो मुस्कुराना आप का
दिल पे असर कर गया था फिर शरमाना आप का
देख के वो मंजर मैने खोया था दिल अपना
रात सी जुल्फ, चाँद सा बदन, चेहरा सुहाना आप का
हाल-ए-दिल का कुछ तो कर ही गया था बयाँ
बारहा नजरें मिलाना और झुकाना आप का
उठा चला गया था दिल में एक बर्क सा
वो तन्हा मिलने के ख्वाहीस जताना आप का
इल्म यूँ हुवा था आप की आशिकी का हमें
वक्त से पहले ही मिलने को पहुँच जाना आप का
इजहारे दिल की ख्वाहीस और वो अजराहे-लिहाज
याद है मुझको अभी भी, वो हकलाना आप का
हाले दिल का बयाँ करा गया था वो खामोशी
मिलने को बुलाना हमें आौर कुछ कह न पाना आप का
बता गया था हालत दिलका, वो बेकरारी
कभी रूकना, कभी चलना वो इठलना आप का
जैसे थे मरासिम सदियों से हुश्न-ओ-इश्क के जजबातें
मेरा बुलाना आप को, और मान जाना आप का
कटा होगा कैसे वो गर्दिश वक्त मेरा सोचिए
आने का वादा कर के, वो आ न पाना आप का
भूले नहीं हम वादा निभाने के लिए चोरी छिपी
भिगते हुए बारीश में वो रात को आना आप का
चौदहवीं मे चाँद ने फैलाया हो जैसे आशमाँ को
सुखाने के लिए वो दामन को फैलाना आप का
बाँधता जा रहा था राफ्ता-राफ्ता दिलों को
बारहा मिलना मेरा, आैर आना जाना आप का
बेजार हो चला था दिल, दुनियाँ के जख्मो जिल्लत से
मुहब्बत का रंग दे गया दिल का बहलाना आप का
बहुत कुछ भूल चुके, पर याद है वो लफ्ज वो परदाज
कैसे भूलता मैं, वो अदा आशिकाना आप का
किये थे इजहार आप ने जजबात का और फिर
हो गया था मेरा दिल, पक्का ठिकाना आप का
भूलाए नहीं भूलता जिन्दगी का वो मंजर सुहाना
मेरे बाल सवाँर सवाँर के मुहब्बत जताना आप का
कर दिया था कर्इ बार आप ने मखमुर मुझ को
पिला के मुझे आप ने नजरों का पैमाना आप का
कभी मुँछ टेढी हुर्इ कभी जुल्फ बिगडा हुवा
हँसते है याद कर के वो मेरा हँसी उडाना आप का
देर से पहुँचे कभी तो आता जाता तूफान यकायक
समझने की कोशिश किए बगैर ही गुस्साना आप का
याद है मुहब्बत का वो दिवानगी वो जुनून
कभी बातें फल्सफे की कभी तोतलाना आप का
इस दिल को भी रुला गया था वो मायूसी
डर से जुदार्इ के मेरे शिने पे आँशु बहाना आप का
जिन्दगी की सफर को दे गया इक सुहाना मोड
तोडने के लिए रश्मोरह वो हिम्मत जुटाना आप का
था सब से हसिन दिन, जिन्दगी का वो मेरा
सुर्ख जोडे मे सज के मेरे घर आना आप का
अच्छा लगा था अजनवी सा मिजाज उस रात को
रश्मो रह के लिए चेहरे पे घुंघट गिराना आप का
वो लम्हा दिल पे तुफान लिए वो घुंघट उठाना मेरा
और नजरों से बर्क गिरा के चेहरा छुपाना आप का
रात के अंधेरे मे शमाँ सा पुरनूर चेहरा आप का
जलने को चाहता हुवा सामने मै परवाना आप का
हर अंग पे शायरी हर अदा पे गुँजते तरन्नुम
कभी देखता कभी सुनता मै वो बदन शायराना आप का
लबो के प्याले, आँखों के शुरूर, रूखसार गुलाबी
मदहोश हुये थे देख के ही वो मयखाना आप का
पायल ओ चुडियों मे तरन्नुम, वक्त मे तराना यूँ भी था
दोनो जहाँ ले आया था फिर गजल का गाना आप का
कभी संजिदा कभी बचकाना हुश्न के वो नखरें
मुझे परेशान कर गया था वो बाते बनाना आप का
लबो की लर्जिस, मखमुर आँखें बता रहे थे आरजू
मुझे सता रहा था लेकिन ख्वाहीस छुपाना आप का
मुद्दत हुर्इ फिर भी हम भूले नही उस रात को
आरजू ए दिल दबा दबा के मुझे सताना आप का
याद है उस रात उन जुल्फों का सहलाना मेरा
आैर फिर मेरे बाहों मे सो जाना आप का
मेहन्दी लगाये हाथो मेँ सुवह चाय के प्याले ले आना
अन्दाजा था अजराह दिल मुझे जगाना आप का
वक्त साथ गुजारे हम ने बारिश मे बर्क मे तूफान मे
हुवा है इस तरह से ये मेरा फसाना आप का
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