एक टुकड़ा बादल और मेरे सपने / कृष्ण पाख्रिन
जब देखता हूँ मैं तुम्हें
आकाश की तरह नीचे आ कर
झुकी हुई होती हो पहाड़ी के माथे पर,
और
बिखरी हुई होती हो क्षितिज के ऊपर,
मानो आकाश में कहीं इन्द्रकमल का फूल खिला हो;
उस समय तुम्हें
बादल का एक टुकड़ा कहने को मन होता है ।
हाँ, मन होता है तुम्हें उठा के,
उस हरी पहाड़ी में से
चाँद उगने वाला उस क्षितिज में से
मेरी आँखों के ख़ाली फ्रेम में बाँध लेने को
और 'ख़ाली' का अस्तित्व मिटा देने को ।
लेकिन मेरा बादल
मुझ से दूर
छतों पर आकर
आँसुओं की बूंदों के अन्दर रोते हुए, हँसने का अभिनय करता है
तब कहने को मन होता है – मेरी नायिका!
असफल है तुम्हारा अभिनय,
विगत के मेरे असफल सपने की तरह ।
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नेपाली से सुमन पोखरेल द्वारा अनूदित
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Krishna Pakhrin translated into Hindi by Suman Pokhrel
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