ये क्या 'सुमन'! हो गया / सुमन पोखरेल
- सुमन पोखरेल
- Sep 3, 2018
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ख्वाह म ख्वाह महताब आपका दुश्मन हो गया
जब पर्दा उठाया रूख से और जहाँ रौशन हो गया
इजहारे मुहब्बत करना था घबरा रहे थे हम
वाजिब हुवा इजहार ये सहबन हो गया
देर बहुत लगाया मुहब्बत जताने को
आगे जो होना था वो फौरन हो गया
हाले दिल कहना था घबराने का डर था
शुक्र है था खुदा ये एहतियातन हो गया
चुडियों के तरन्नुम में बलखाते हुए झुमके
वो आए घर मेरा अंजुमन हो गया
बेजान थे हम उन से मिलने से पहले
मौत के बाद जिन्दगी ये क्या 'सुमन'! हो गया
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