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माहजबी की तरह / सुमन पोखरेल


कानून बनाएँ मयकशीका कानून-ए-मजहबी की तरह

फिर मिल के जलील करेँगे पण्डितको शराबी की तरह

* * * * * * *

हरेक बात कह देने की शिताबी की तरह

इजहार-ए-दिल कर बैठे शायर-ओ-कवि की तरह

बाहजाराँ ख्वाहीसेँ उछल रहे थे दिल में

वो मिले भी तो मिले कोई अजनबी की तरह

उम्मिद था इजहार-ए-मुहब्बत का हमें मगर

चले गए वो शरमा के जब कभी की तरह

कब तक दूर रहते उन्हे आना ही था आखिर

वो आए शब-ए-जिन्दगी मे माहजबी की तरह

आहिस्ता आहिस्ता चढने लगा शुरूर ए मुहब्बत

हम झूमने लगे शबाना रोज शराबी की तरह

शुरू मे तो खुदा सा लगने लगा था प्यार हमे

होले होले करने लगा असर खराबी की तरह

तजरिबा न था प्यार-ओ-मुहब्बतका हमें, सुमन !

देखते रहे उन्हे तसबीर-‍ए-किताबी की तरह

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