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गर्मी


गर्मी अपनी उत्कर्ष से भी और उपर जा रही है

मानो, कसम खा रखा है,

तमाम थर्मामिटरों को तोडे बिना निचे न उतरने की ।

हवा इधर आने का मन नहीं कर रहा

बादल को ले के गया हुआ है कहीं

हनिमुन मनाने।

इसलिए बारिश भी नहीं हो रही ।

सूरज भरपूर शक्ति लगा के धूप बरसाता रहा है

लाद रहा है निर्ममतापूर्वक निरीह जीवनों के उपर

आपना एकतरफा शासन ।

इन्सान के शरीर और मष्तिस्क के बीच के सामन्जस्य को

तोड दिया है गर्मी ने ।

आर्द्रभूमि से हो गऐ हैं इन्सानों के शरीर

पागल बाढ ने जैसा समूचा भिगोया है बदन को पसिने ने ।

वो समझ नहीं पा रहा है त्वचा और रोवां का भेद

और इन्सानों के विचारों को शिर से बहाता हुआ

तलवा तक पहुँचा दिया है ।

पसिने ने खिँचकर बदन पर ही सटा दिया है

बेमन से लगाए हुए कपड़ो को भी ।

आजीवन अभिनयरत इन्सान

गाली दे रहा है कपड़ो के आविस्कार को ।

खिडकियाँ हो के भी न होने के बराबर हैं,

किसी असफल राष्ट्र की सरकार की तरह।

पर्दे हिलेँ या न हिलेँ खुद असमन्जस में हैँ ।

दिवारें कृत्रिम वैमनष्य का ताप फेंकते हुए

ऐसे फूँकार रहे हैं जैसे आपस मे लडने जा रहे हैँ ।

कमरा खुद ही बावला हो गया है,

खुद के अन्दर का ताप सह नही पाने से ।

बिस्तर तवे की तरह आँच दे रहा है ।

उठते हुए इन्सान के शरीर पे सट कर

भागने की कोशिश कर रहा है

पसिने से तर तन्ना ।

सिलिंग पंखा आजीत है,

नाम मात्र का शक्तिविहीन अधिकारी सा

उल्टे सर लटक के निरन्तर गाली देते रहने पर भी

गर्मी का टस से मस न होने से ।

आगे टपक पडने हर कोई का गाली सुनते हुए

सर झुका के घुम रहा है टेबुल पंखा

सरकारी अफिस का कोई श्रेणीविहीन फाजिल मुलाजिम की तरह ।

बिजली चली गयी है योजनाकारों के बैंकखातो पे छुपने

और बच्चा रो रहा है

गर्मी की वजह से माँ का दूध चुस न सकने से ।

बिबी के उपर उधेड रहा है सौहर अनाहक

असफल योजना व गर्मी के पारा टुटकर निकला हुवा गरम गुस्से को ।

बिबी के लिए वो गुस्सा

खुद से भोगा जा रहा गर्मी से ज्यादा गरम नही है ।

उन्मत्त उबल रहा है सडक का पीच

और ऐसे बढाता जा रहा है हवा मे उष्णता

जैसे तोड डालेगा इन्सानों के धैर्य को ।

अस्तव्यस्त हो के बाते कर रहे हैँ

खेत रोप न पाने से फुर्सत मिले हुए स्त्रीयाँ

पेड के निचे जमा होकर ।

बगल में बंधा हुवा बैल जानने को उत्सुक है

औरतों को सिर्फ सर्दियों में ही शरम आती है क्या?

सम्भ्रान्त माने गए स्त्रीयों के खुद के आइने में सीमित रहे कुछ रहस्येँ भी

द्रुततर गति में सार्वजनिक हो रहे है गर्मी के बहाने ।

पसिने के चिपचिपाहट पे उलझ गए हैँ सभी के जोश और कौशल ।

प्रेमी-प्रेमिकाएँ एक दुसरे को दूर से ही देख कर दिल को सम्हाल रहे हैँ,

तमाम मोह और आशक्तियों से ज्यादा शक्तिशाली बन के खडा है

उन के बीच मे इस प्रचण्ड गर्मी का विकर्षण ।

सूरज अपना वर्चश्व दिखाने मे तल्लिन है अब भी

और बढता ही जा रहा है गर्मी का घमण्ड ।

इतना होते हुए भी विश्वस्त हैँ यहाँ जी रहे हर एक कण

कि

गर्मी को पछाडकर अवस्य आएगी शीतलता ।

अनुभव साक्षी है,

निर्मम शासन कर के यहाँ कोई ज्यादा देर टिक नहीं सकता ।

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कवि द्वारा नेपाली से हिन्दी में अनुदित

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