धूवेँ का जंगल \ ईश्वरबल्लभ
उपर आसमान को देखना है
क्षितिज को छुना है
किसी को एक फूल देना है
आसपास कोई है कि नही !
कोई है तो उसे बुलाना है ।
फिर कोई लहर व लस्कर बनाके दूर तक पहुँचना है
शाम का रक्तिम सूरज
खो गया शायद कहीं
सुब्ह का भोर भी दिखाई नहीं दिया,
निचे जानेवाले रास्ता भी नहीं है,
कहाँ गए वे बस्तीयाँ ?
कहाँ गए वे रिस्तेदार ?
इसी धूवेँ का जंगल मे सब को ढुँडना है ।
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मूल नेपाली से सुमन पोखरेल द्वारा अनूदित
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Ishwar Ballav translated into English by Suman Pokhrel
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Read origional Nepali of this poem here
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Read English translation of this poem here
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