शोकगीत का पोस्टमार्टम / निमेष निखिल

भगाना है किरनोँ से मार-मार कर

कमरे में बचे हुवा अँधियारे को ।

भूख झाँक रही है बेशर्म नरदौआ में से

रोग रो रहा है आँखोँ के सामने

खदेडना है सभी को जीवन के अगल बगल से ।

यह उन्मुक्त हंसी,

किसी की कुटिलता उधार माग कर चिपकाया हुवा नहीं है हम ने चेहरे पे

गिराकर ही छोडेंगे,

पहाड की चोटी के ऊपर ही लुकाछिपी खेलते रहने वाले सूरज को एक दिन

मामूली-सा वो बादल कब तक ढँक के रख सकेगा उजियारे को ?

हम हर चेहरे पे सुकुमार सूर्योदय का इन्तजार कर रहे हैँ ।

लिख ही लेंगे कविता तो,

बस्, कुछ उभर लेँ मादल से खाली पेट पहले

थोडी सी हंसी बिखर जाए सुनसान गलियारो में

जहाँ से आया हो उधर ही लौट जाए चेतन में लगने वाले सर्दी व छीँक

कविता तो लिख ही लेंगे फिर कभी भी ।

बहुत गा लिया दुःख के सिसकियोँ का धुन मैं

अब पता हुवा, गीत गाने के अभिनय में

हम तो शोकगीत गुनगुनारहे थे आज तक

अपने ही हृदय के वेदनाओं को निचोडकर ।

अब करना है –

इन सारे शोकगीतों का पोस्टमार्टम

और निकालना है पीडा के विषाणुओँ को जिन्दगी के कोनों से

ढूँडना है नये समय के लिए नए-नए धून को

गीत तो फिर भी हमें गाना ही है ।

................................................................

(मूल नेपाली से सुमन पोखरेल द्वारा अनूदित)

................................................................

Nimesh Nikhil translated into Hindi by Suman Pokhrel

..............................................................................................

#Poetry #अनवद #अनदतकवत #कवत #हदअनवद #NimeshNikhil #नमषनखल #SumanPokhrel #समनपखरल

    0